ज़िन्दगी
जैसे परछाई हो
तुम्हारे एहसासों की
ख़्वाबों की
इनायतों की
तुम्हारे हर्फ़ हर्फ़ ने
आकार लिया है
मोती सा
मन के किसी कोने में
जैसे आफ़ताब गिरता हो
शरारत करने
शफ़क़ की झील में
सलीके से न सही
फिर भी पिरोता तो है
मोतियों की वो
एक माला
जैसे कहकशा हों
आँखें तुम्हारी
जब कभी देखा
तुमने चेहरा मेरा
कि मैंने जिया था
सपनों को
तुम्हारी आँखों से
तब तुम भी मैं होते थे
जब भी मैं
खुश होता था
जैसे झील से शांत
चेहरे पर
किरणों ने रचा हो
नई सुबह का आरंभ
अब उसी लम्हे को
मैं जीता हूँ
बना के अक़्स अपना
कि तेरे शफ़क़ के
हार में
पिरो दूँगा
मैं अपना मोती
एक दिन......